24 नवंबर 2011

एक थप्पड़...जनता के नाम...

(दिल्ली में आज एक कार्यक्रम के दौरान बढ़ती महंगाई से गुस्साए एक शख्स ने केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार को थप्पड़ जड़ दिया...पवार इफको के एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने एनडीएमसी सेंटर पहुंचे थे....तभी हरविंदर सिंह नाम के शख्स ने पवार को थप्पड़ रसीद कर दिया...इस हमले से एक बार फिर साफ़ हो गया कि महंगाई और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर जनता का ग़ुस्सा बर्दाश्त से बाहर हो चुका है...)
एक थप्पड़...महंगाई के नाम...एक थप्पड़...उन किसानों के नाम....जो क़र्ज़ के बोझ तले ख़ुदकुशी करने पर मजबूर हो गए...एक थप्पड़...उस मजबूर जनता के नाम...जिसकी सुनने वाला कोई नहीं...एक थप्पड़ उस भ्रष्टाचार के नाम...जिसकी जड़ें सिस्टम में गहरे से पैठ कर चुकी हैं...दरअसल ये थप्पड़ उस अवाम के ग़ुस्से का इज़हार है...जो नेताओं के शह और मात के खेल में ख़ुद को ठगा महसूस कर रही है...ये थप्पड़ महंगाई के नाम इसलिए है क्योंकि इसको रोकने की कोई कोशिश रंग लाती नहीं दिख रही है...हर बार एक नई तारीख़ दे दी जाती है...इस बार वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने मार्च का महीना मुकर्रर किया है...ये थप्पड़ किसानों के नाम इसलिए है...क्योंकि उनको फसल की वाजिब क़ीमत नहीं मिल रही है...महाराष्ट्र में कपास के समर्थन मूल्य पर कोहराम मचा है...लेकिन किसानों की सुनता ही कौन है...किसानों का कब्रिस्तान बन चुका है विदर्भ...इस साल के पहले 6 महीनों में वहां 79 किसानों ने ख़ुदकुशी कर ली...जबकि 2010 में 275 और 2009 में 263 किसानों ने क़र्ज़ के बोझ तले जान दे दी...ये थप्पड़ मजबूर जनता के नाम इसलिए है...क्योंकि महंगाई और भ्रष्टाचार पर न तो कोई रोक लग रही है...और न ही कोई इस पर साफ़-साफ़ बोलने को तैयार है...हिंदुस्तान की अवाम सियासत से कितनी तंग आ चुकी है...उसकी नज़ीर है ये थप्पड़... ज़ाहिर है जनता अब जूता उठाने के लिए जहमत करने के बजाए...सीधे थप्पड़ रसीद करना आसान समझ रही है...

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