07 मई 2011

मां...पूरी ज़िंदगी तुम्हारे नाम!

डे बाई डे खुशियां मनाने के लिए तारीख खोजने वालों को आज का दिन मिला है, मदर्स डे मनाने का। यानि कि आज फिर नाटकीयता होगी, मां को कार्डस दिए जाएंगे फूल दिए जाएंगे, बुके या फिर कोई महंगा गिफ्ट। हर त्यौहारों की प्रायोजित कीमत तय कर कम्पनियां इसे भुनाने में पीछे नहीं रहेंगी। जहां पूरा विश्व इसे मनाएगा वहां भला भारतीय कैसे पीछे रहेंगे। पर इन सबसे एक बड़ा सवाल खड़ा होता है कि क्या वाकई हम भारतीयों को महज औपचारिकता के नाम पर कोई त्यौहार मनाने की ज़रूरत है...दुनिया का तो नहीं पता पर अपने देश में मां का दर्जा इतना बड़ा है...कि उसके नाम पूरी ज़िंदगी की जा सकती है, तो एक दिन क्या चीज़ है, मगर हाय रे अतिरेक और बाज़ारवाद पूरी तरह आमादा है भारतीयों को जज्बातों को जज्ब करने के लिए,और लोग भी ख़ुद को हवाले किए दे रहे हैं। अंग्रेजी कैलेंडर के हिसाब से पढ़ने वाले इन मौकों को वाकई लोगों ने कभी अपने तर्क की कसौटी पर रखने की जहमत नहीं दिखाई,बल्कि अगर आप ऐसे लोगों से सवाल करेंगे तो वो आपको ख़ुद ही कटघरे में खड़ा कर देंगे। उन्हें महज सहज लगता है पैसा खर्च करना और एक दिन की औपचारिकता है जिसे निभाने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते। आदमी क्यों नहीं ये समझ पाता कि ये सब बुद्धजीवियों को टोटके है। ईमानदारी से अपने अंदर झांक कर ज़रा देखने और सोचने की ज़रूरत है कि क्या वाकई ऐसा हो सकता है कि हम अपनी मां को सिर्फ एक दिन के लिए प्यार करें या फिर उसके लिए सोचे जवाब खुद मिल जाएगा। भेड़चाल की हमारी आदतों ने हमें सिर्फ कैलेंडर के 365 दिन 1 जनवरी से 31 दिसम्बर तक गिनना सिखाया है और उसमें खुशियां मनाने का मौका हम खुद चुनते है। मै तो इतना जानता हूं कि

एक अनूभूति होती है,
  जो छूती है सबका मन
ममता से संवारती जो
  अपने हर सुकुमार का तन
ऐसी होती ही है मां....
आनंदित पुलकित देखकर होती
   सुख से वो भर जाए
निष्छल अपने प्रेम की ज्योति
   जीवन में रोज़ जलाए
ऐसी होती ही है मां....
एक शब्द की महिमा भारी
   जो सृष्टि को करती धारण
अतुलित अनुपम ये अवतारी
   हम सबके हैं जिसके कारण
ऐसी होती ही है मां...
जीवन की गहराइयों को समेटे
    कोई थाह न इसका पाए
मोक्ष मृत्यु का स्वयं लपेटे
    सदैव सत्य की दिशा दिखाए
ऐसी होती ही है मां.....
-अरविन्द पाण्डेय

3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ख़ूब अरविंद...बेहतरीन अदायगी के साथ लिखा गया है...
    इस तरह से मेरे गुनाहों को वो धो देती है...मां बहुत गुस्से में होती है तो रो देती है...

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