21 मई 2011

सियासतनामा...


मैं दहशतगर्द था मरने पर बेटा बोल सकता है
हुकुमत के इशारे पर तो मुर्दा बोल सकता है
हुकुमत की तवज्जो चाहती है ये जली बस्ती
अदालत पूछना चाहे तो मलबा बोल सकता है
कई चेहरे अभी तक मुहजबानी याद हैं इसको
कहीं तुम पूछ मत लेना ये गूंगा बोल सकता है
अदालत में गवाही के लिए लाशें नहीं आतीं
वो आंखें बुझ चुकी हैं फिर भी चश्मा बोल सकता है
बहुत सी कुर्सियां इस मुल्क में लाशों पर रखी हैं
ये वो सच है जो झूठे से भी झूठा बोल सकता है

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